(जनशक्ति खबर) पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई के नीतीश सरकार के फैसले पर उठने लगे सवाल, देशभर के दलित नेताओं ने खोला मोर्चा।
(पटना)
बिहार में नीतीश सरकार के द्वारा आनंद मोहन की रिहाई के लिए नियम में फेरबदल किए जाने के बाद देशभर के दलित नेताओं के तरफ से इसके खिलाफ आवाज भी उठने लगे हैं।बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के साथ-साथ एससी- एसटी आयोग की राष्ट्रीय अध्यक्ष इंदु बाला ने भी पूर्व सांसद आनंद मोहन को जेल से रिहा किए जाने के फैसले पर कड़ी नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने कहा है कि गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी के हत्या मामले में जेल में बंद आरोपी को रिहा करने के फैसले पर बिहार सरकार एक बार जरूर पुनर्विचार करे।
उन्होंने ट्वीट कर नीतीश कुमार को दलित विरोधी करार दे दिया है। मायावती ने ट्वीट कर लिखा है कि 'बिहार की नीतीश सरकार द्वारा, आन्ध्र प्रदेश (अब तेलंगाना) महबूबनगर के रहने वाले गरीब दलित समाज से आईएएस बने बेहद ईमानदार जी. कृष्णैया की निर्दयता से की गई हत्या मामले में आनन्द मोहन को नियम बदल कर रिहा करने की तैयारी देश भर में दलित विरोधी निगेटिव कारणों से काफी चर्चाओं में है। आनन्द मोहन बिहार में कई सरकारों की मजबूरी रहे हैं, लेकिन गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी. कृष्णैया की हत्या मामले को लेकर नीतीश सरकार का यह दलित विरोधी व अपराध समर्थक कार्य से देश भर के दलित समाज में काफी रोष है। चाहे कुछ मजबूरी हो किन्तु बिहार सरकार इस पर जरूर पुनर्विचार करे।' वहीं, एससी- एसटी आयोग की राष्ट्रीय अध्यक्ष इंदु बाला ने सीधे तौर पर सरकार को दोषी माना है। उन्होंने कहा है कि बिहार में अपराधी को बचाने के लिए कानून तक बदल डालेंगे। गोपालगंज डीएम हत्या मामले में आनंद मोहन पर केस चला। उन्हें जेल से बाहर निकालने के लिए संविधान में संशोधन किया गया। केस को कैसे सरकार चेंज कर सकते पता नहीं। आनंद मोहन को बचाने के लिए सरकार क्या-क्या कर सकती ये समझ से पड़े हैं। ऐसे में क्या अनुसूचित जाति के लोग खुद को बिहार में सुरक्षित महसूस करेंगे? सरकार कानून बनाती है कि अपराध कम हो न कि अपराध को बढ़ावा दिया जाए। इस तरह से कानून बदल देंगे तो अपराधी बेखौफ होकर घूमेंगे ही। फिर कैसा संशोधन करते हो आप यह जांच का विषय है। आयोग इसका संज्ञान लेगा और सरकार को नोटिस करेंगे। हमें जवाब चाहिए कि किस नियम के तहत इसको बदला गया और बदले तो क्या आधार रहा।बता दें कि आन्ध्र प्रदेश के (अब तेलंगाना) महबूबनगर के रहने वाले दलित समाज के बेहद ईमानदार आईएएस जी. कृष्णैया की 5 दिसम्बर 1994 को बिहार में पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। इस मामले में पटना की निचली अदालत ने 2007 में पूर्व सांसद आनंद मोहन को फांसी की सजा दी थी। इसके बाद पटना हाईकोर्ट ने इस सजा को उम्रकैद में बदल दिया था। आनंद मोहन अभी भी जेल में हैं। बताया जा रहा है कि उनकी सजा की अवधि पूरी हो चुकी है। 3 मई को आनंद मोहन के बेटे की शादी है। इसके लिए वह पैरोल पर हैं। वहीं नीतीश सरकार ने नियम में कुछ बदलाव किया है जिसके तहत अब आनंद मोहन की रिहाई की चर्चा भी जोर पकड़ रही है।
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