(जनशक्ति खबर)एक जन्मजात चक्रवर्ती डॉ सचिदानंद सिन्हा के जयंती पर बिशेष
भारत की आजादी से लेकर अभी तक देश की निर्माण में बिहार कई सपूतों की अहम योगदान है।उसमें से एक है डॉ सचिदानन्द सिन्हा तो आइये जानते एक जन्मजात चक्रव्रती डॉ सचिदानन्द सिन्हा जी के बारे में-------(उपेन्द्र सिंह)
बिहार को बंगाल से अलग करने में डॉ सचिदानंद सिन्हा ने अहम भूमिका निभाई थी।डॉ सचिदानंद सिन्हा बिहार के प्रसिद्ध पत्रकार और अधिवक्ता थे।वो भारत के संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष भी थे। वो बंगाल से बिहार राज्य को अलग कराने में अहम भूमिका निभायी थी।इसके लिए उन्होंने सबसे बड़ा हथियार अख़बार को बनाया।उन दिनों दक्षिण बिहार हेरालड अख़बार था।जिसके एडिटर गुरु प्रसाद सेन थे। 1894 में डॉ सचिदानंद सिन्हा ने एक अंग्रेजी अखबार निकाला।जो 1906 में बिहारी के नाम से जाने जा लगा। डॉ सचिदानन्द सिन्हा का जन्म 10 नवम्बर 1871 को महर्षि विश्वमित्र की धरती बिहार के बक्सर जिला के मुरार गांव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। डॉ सिन्हा जी के पिता बख्शी शिवप्रसाद सिन्हा डुमरांव महाराज के मुख्य तहसिलदार थे। डॉ सिन्हा का प्राथमिक शिक्षा गांव में हुई थी। उसके बाद 18 साल के उम्र में 26 दिसम्बर 1889 को उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड चले गए। वहाँ तीन साल तक पढ़ाई करने के बाद 1893 में स्वदेश लौटे।उसके बाद इलाहाबाद में 10 वर्षो तक बैरिस्टरी की प्रैक्टिस की। उन्होंने हिंदुस्तान रिव्यू समाचार पत्रों को कई वर्षों तक संपादन किया।इलाहाबाद में कई वर्षों तक प्रैक्टिस के बाद 1894 में सिन्हा जी की मुलाकात जस्टिस खुदाबक्श खान से हुई और वो उनसे जुड़ गए।जस्टिस खुदाबक्श खान छपरा के थे।उनहाने पटना में 29 अक्टूबर 1891 में खुदाबख्श लाइब्रेरी खोली जो भारत के प्रचीन पुस्तकालयों में एक है।सिन्हा जी जस्टिस साहब के काम में मदद करने लगे।इसी बीच जस्टिस साहब का तबादला हैदराबाद के उच्च न्यालय में हो गया।1894 से 1898 तक सिन्हा साहब ने उस लाइब्रेरी की जिमेवारी अपने कंधों पर ली।-----बिहार को बंगाल से अलग कराने में सिन्हा साहब की अहम भूमिका थी।1894 ने डॉ सचिदानंद सिन्हा ने द बिहार टाइम्स के नाम से एक अंग्रेजी अखबार निकाली।इस अख़बार के द्वारा बंगाल से बिहार को अलग करने का मुहीम चलाते रहे। 1910 के चुनाव में चार महाराजाओं को परास्त कर वो केंद्रीय बिधानपरिषद में प्रतिनिधि नियुक्त किए। वो प्रथम ऐसे भारतीय थे जिन्हें एक प्रान्त का राज्यपाल और हॉउस ऑफ़ लॉर्ड्स का सदस्य बनने का गौरव प्राप्त है।सिन्हा जी संविधान सभा का प्रथम अध्यक्ष थे। आजादी मिलने के बाद देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती संविधान निर्माण की थी।संविधान सभा के रास्ते में कई अवरोधों के ऊंचे ऊंचे पहाड़ थे।कांग्रेस के तात्कालीन अध्यक्ष आचार्य जेबी कृपलानी ने बैरिस्टर डॉ सचिदानन्द सिन्हा को संविधान सभा का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया। सिन्हाजी ने अपनी पत्नी राधिका सिन्हा की याद में 1924 में सिन्हा लाइब्रेरी की बुनियाद बिहार की राजधानी पटना में डाली थी। डॉ सिन्हा ने इसकी स्थापना लोगो को मानसिक बिकास के लिए की थी।10 मार्च 1926 को एक ट्रस्ट की स्थापना की।लाइब्रेरी की संचालन की जिम्मा उसे सौप दी गई। ट्रस्ट के सदस्यों में माननीय मुख्य न्यायधीश,मुख्यमंत्री,शिक्षा मंत्री पटना बिश्वविद्यालय के उपकुलपति और उस समय के अन्य गणमान्य लोग आजीवन सदस्य बनाए गए।लाइब्रेरी के कर्मचारी संजय कुमार के अनुसार श्री सिन्हा बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए लंदन जाना चाहते है।लेकिन उनके माता पिता बिदेश नही जाने देना चाहते थे।लेकिन वो लंदन गए आने के बाद बंगाल से बिहार को अलग करवाए। वही श्री सिन्हा जी के 6 मार्च 1950 को दुनिया को अलबिदा कह दिए।लेकिन सिन्हा जी की आज भी उनके कीए गए कार्य लोगो की जहन में है।
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