(जनशक्ति खबर)अख़बार के पन्नो तक सिमट कर रह गई भारत रत्न बिस्मिल्ला खाँ की यादें।(उपेन्द्र सिंह)

 अख़बार के पन्नो तक सिमट कर रह गई भारत रत्न बिस्मिल्ला खाँ की यादें


।-----बिहार के वो बिभूति जिन्हें दुनिया कहती है शहनाई सम्राट।बिस्मिल्ला खाँ--।उनकी पुण्य तिथि पर जानिए उ(उपेन्द्र सिंह)------------बिस्मिल्ला खाँ पुण्य तिथि------------जिनकी शहनाई की सुरीली धुन से देश ही विदेशो में तक गूंजी।जिसकी धुन से भारत जी स्वतंत्रता की जशन में चार चांद लगा दिया।आज उस महान ब्यक्तित्व की यादें अख़बार की पन्नो तक सिमट कर रह गई।जी हम बात कह रहे भारत रत्न सुरों का भगवान बिस्मिल्ला खाँ की।।।बिहार के मिट्टी ने एक से बढ़कर एक प्रतिभाओ का जन्म दिया है उसमें मिट्टी के उस्ताद बिस्मिला खाँ भी जन्मे है आज इन महान विभूति की पुण्यतिथि पर पूरा देश याद कर रहा है। तो आइए जानते है इस महान ब्यक्तित्व के पुण्यतिथि पर उनके बारे में-------------बिस्मिल्ला खाँ का असली नाम कमरूदीन था। कमरूदीन का दादा प्यार से बिस्मिल्ला कहते थे।इसलिए उनका नाम बिस्मिल्ला खाँ पड़ गया।खाँ साहब एक संगीत घराने से तलूक रखते थे। चाचा अली बक्श कशी विश्वनाथ मंदिर में शहनाई बजाया करते थे।उससमय खाँ साहब महज 6 साल के थे।उनको शहनाई से प्यार हो गया।जिससे उन्होंने ठान लिया की हम शहनाई ही बजायेंगे इसलिए अपना चाचा का ही गुरु मान लिया।-------ऐसे महान ब्यक्तिव का जन्म बिहार के बक्सर जिला के डुमरांव के बंधन पटवा रोड के बचई मियां के आंगन में 21 मार्च 1916 को बिस्मिल्ला खाँ का जन्म हुआ था। आज उनके घर के लोग नही रहते है लेकिन उनकी यादो के नाम पर आक भी उनका खंडहर घर मौजूद है। जिले में ऐसा कोई उनके यादो के नाम पर कोई चीज नही जो आनेवाली पीढियां उनके नाम से जाने। 21 अगस्त 2006 को 90 बर्ष की अवस्था में बिस्मिल्ला खाँ ने बनारस में अंतिम सांस ली थी।----------------बिहार के बक्सर के डुमरांव बांके बिहारी मंदिर में जवां हुई थी धुन--------उस्ताज की ख्याति की बुनियाद डुमरांव महाराज के बांके बिहारी मंदिर की देन है।तब राजपरिवार के देखरेख में मंदिर की पूजा पाठ होता था।मंदिर की आरती के दौरान शहनाई बजाने की परम्परा थी।जिसकी जिमेवारी उनके पिता बचई मियां निभाते थे। यही से बिस्मिल्ला खाँ के पिता ने शहनाई का रिवाज शुरू कराया था। बाद में उनके मामा अपने यहाँ बनारस बुला लिया। जहाँ गंगा की लहरों के साथ धुन की ऐसी रिवाज की जहाँ सफलता उनको कदमो चूमने लगी जो सुरों के बादशाह  बन गए। बिस्मिल्ला खाँ संगीत की दुनिया में अमर है। उन्होंने भारत रत्न,पदम् बिभूषन और पदश्री जैसे पुरस्कार से सम्मानित है। वो आज के ही दिन यानि 21 अगस्त 2006 में दुनिया के अलविदा बोल दिए थे। लेकिन इस महान ब्यक्तित्व की यादो में आज भी कुछ नही है।इनकी पुण्यतिथि केवल अख़बार के पन्नो तक सिमट कर रह गई है। आज तक बिहार सरकार ने इनके नाम पर एक पुस्कालय का भी निर्माण नही करा सकी। तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री लालू प्रसाद यादव ने 22 अप्रैल 1994 को उस्ताज साहब के नाम पर उनके पैतृक गांव डुमरांव खाली पड़ी जमीन पर भवन बनाने की नींव डाली थी। ये कार्य नगर विकास और नगर परिषद के बीच उलझ कर रह गया। जो हर चुनाव में एक मुद्दा बनकर रह जाता है।बाद में नेताजी लोग भूल जाते है।//////आजादी के जशन में गूंजा था उनकी शहनाई। ---------------15 अगस्त 1947 के दिन जब देश आजाद हुआ तब भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने खाँ साहब को बुलावा भेजा।जहां बिस्मिल्ला खाँ की जादुई शहनाई से जश्न ये आजादी की रौनक बढ़ गई।----आखिर ऐसे महान ब्यक्तित्व ने 21 अगस्त 2006 के दिन 90 बर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दीए।

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