(जनशक्ति खबर)रिपोर्ट : उपेन्द्र सिंह - गुमनाम होते जा रहे देश को आजाद कराने वाले आजादी के दिवाने।

उपेन्द्र सिंह(पटना)----------आजादी के दीवानों का जीवन युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणादायी है। जिनके बदौलत हमसभी भारत में स्वतंत्रता पूर्वक रहते हैं. लेकिन उन सेनानियों को आज समाज भूल गया, यह प्रश्न दिल को कुरेदने वाला है. पत्नी और अपने दुधमुंहे बच्चों को प्रकृति के भरोसे छोड़कर सैकड़ों नौजवानों की टीम के साथ अंग्रेजी सरकार को नाकों चने चबवाने वाले डुमरांव अनुमंडल के केसठ गांव निवासी स्व. पंडित शिव वेलाश मिश्र की यादें अब धुंधली होती जा रही हैं। विडंबना है कि ऐसे वीर सपुतों के परिजनों की सुधि लेने वाला आज कोई नहीं है।-----------पत्नी और अपने तीन छोटे बच्चों को प्रकृति के भरोसे छोड़कर सैकड़ों नौजवानों की टीम के साथ अग्रेजी सरकार की दांत खट्टे करने वाले बक्सर जिले के डुमरांव अनुमंडल के केसठ गांव निवासी पंडित शिव वेलास मिश्र की यादें लोगों के जेहन अब में धुंधली पड़ती जा रही है। देश को आजादी दिलाने के लिये अपना सर्वस्व बलिदान करने वालों में स्वतंत्रता सेनानी स्व. मिश्र का जन्म 1891 ई० को केसठ गांव में हीं हुआ था। इनके नेतृत्व में इसी गांव के स्वतंत्रता सेनानी स्व. शिव विलाश पांडेय, गंगा साह, केशरी राय (खरवनीया) आदि ने भारत को आजाद कराने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। विडंबना है कि ऐसे वीर सपुतों तथा इन आजादी के दीवानों के परिजनों की सुधि लेने वाला कोई नहीं है। ना ही सरकार और न हीं समाज, जिसके लिए इन शहीदों ने अपनी कुर्बानी दी। इनके परिजन बताते हैं की स्व. मिश्र का अपना आधा जीवन तो हजारीबाग जेल में हीं बीता था। यही नहीं अंग्रेजी सरकार इनके घर का निर्माण भी नहीं होने दिया। गोरों के हाथों घर के चौखट किवाड़ भी बार- बार उखाड़े जाते रहे।---------–------------------ अमर स्वतंत्रता सेनानी का पुस्तैनी घर आज भी अंग्रेजों के जुल्मों की देती हैं गवाही 

इनका पुस्तैनी घर आज भी अंग्रेजों के जुल्मों की गवाही देते हैं। प्रशासनिक उपेक्षा के कारण स्व. मिश्र का घर आज जमीन के नीचे आधा दब चुका है जहां आजादी के नग़मे गाये गए, जहां स्वतंत्र भारत का नया इतिहास लिखा गया। इनके परिजनों को गर्व है फिर भी दुख भरे लहजे में बताते हैं कि राजनीतिक दलों के नेताओं सहित सरकार तथा उनके अधिकारियों ने कभी भी इनके परिवार की सुधि नहीं ली. जिन्होंने अपने देश की आजादी के लिए अपना घर बार त्याग कर आजादी के लड़ाई में अंग्रेजों से लोहा लिया था। जिन्होंने अपने दुधमुंहे बच्चों व पत्नी को छोड़ कर देश को आजाद कराने चुपके से घर से निकल पड़े थे।-------------------- क्या कहते हैं उनके परिजन

स्व. पंडित शिव वेलाश मिश्र के पौत्र विनीत कुमार मिश्रा बताते हैं कि मेरे पिता स्व. विजय शंकर मिश्र से जानकारी के अनुसार मेरे दादा जी स्व. मिश्र जब अपना घर बार त्याग कर 1929 से 1947 तक महात्मा गांधी के आह्वान पर आजादी के लङाई में कुद पङे थे। उस वक्त भी घर की स्थिति ठीक नहीं थी जो आज तक ठीक नहीं हो पायी। स्व. मिश्र आजादी की लड़ाई के दौरान हजारी बाग जेल में डेढ़ वर्ष तक बंद रहे. अंग्रेजों द्वारा बर्बरतापूर्ण पिटाई के कारण उनका जबड़ा टूट गया। जिसके चलते वें कैंसर से ग्रसित हो गये। 1947 में जब देश आजाद हुआ तो वे बीमार थे, गांधी मैदान पटना के झंडोतोलन समारोह में भाग लेने के लिए बीमार होने और डाक्टरों के मना करने के बावजूद भी वे हास्पिटल से गांधी मैदान पटना गए, वापस लौटने के बाद उनकी तबीयत और अधिक बिगड़ गयी जिसके कारण पटना में हीं उन्होंने इलाज के दौरान 26 सितंबर 1947 को अंतिम सांस ली। देश को अंग्रेजी सत्ता से मुक्ति दिलाने हेतु सर पर कफन बांधे सेनानियों के जज्बे और देशभक्ति को तो जमाना सदैव महसूस करेगा हीं लेकिन उन पुर्वजों का अनुसरण ही शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। जब कि ऐसे महान वीर सपुतों के सम्मान में ना तो प्रखंड मुख्यालय पर आदमकद प्रतिमा स्थापित हो सका और ना ही इन सभी के याद में आज तक शीलापट लगाया गया, जबकि देश को आजाद हुए 75 वर्ष बीत गये, फिर भी इन स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों को आज तक सरकारी सहायता प्राप्त नही हो सका।------------------------------------------------- सेनानियों के नाम नहीं हुआ सड़के व सरकारी भवन का नामकरण

स्थानीय सड़के व सरकारी भवन का नामकरण सेनानियों के नाम पर करने के लिए स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय शिव विलाश पांडेय के पुत्र नरेंद्र पांडेय ने कई बार मांग भी की। जो आज तक पुरा नही हो सका। नरेंद्र पांडेय ने बताया कि स्वतंत्रता सेनानी के उत्तराधिकारियों के लिए बक्सर आवेदन दिया गया था, जिसका पत्रांक 1359/29 नवंबर 2006 था बक्सर से सभी कागजात जांच के लिए अनुमंडल में आया और अनुमंडल से इस पत्रांक के माध्यम से केसठ प्रखंड को भेंजा गया लेकिन इसी बीच से कागज कहां गया। पता नहीं चला, काफी प्रयास के वावजूद वह कागजात नहीं मिल सका।

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